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क्या आप जानते हैं ?

क्या आप जानते हैं ?

गुरू नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई. में एक हिन्दू घराने में हुआ। इसके बावजूद उनके द्वारा तीसरे धर्म (सिक्ख धर्म नींव रखी गई।) प्रत्येक धर्म किसी विचारधारा पर आधारित होता है तथा विचारधारक भिन्नता से ही नए धर्म का उदय होता है। सिक्ख धर्म की नींव रखे जाना भी विचारधारक भिन्नता का ही फलस्वरूप है। अतः सिक्ख धर्म की विचारधारा सनातन धर्म, इस्लाम धर्म इत्यादि से भिन्न है। बाबा नानक ने विश्व को जो दृष्टि (विचारधारा) दी उसे गुरबाणी कहा जाता है, जो आज भी साहिब श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप में दर्ज है और सुविधा से उपलब्ध भी है। गुरू नानक का मत (विचारधारा) ही सिक्ख धर्म कहलाया और इस मत (गुरमत) पर चलने वालों को सिक्ख (शिष्य) के नाम से जाना जाने लगा।

विचारधारा व्यक्ति के विचारों को बदलती है और विचार व्यक्ति के आचरण को । जो व्यक्ति गुरू नानक के उपदेशों को, उनकी सच्ची वाणी में से पढ़कर समझ लेता है, निम्नलिखित बातें उसके आचरण में खुद-ब-खुद प्रवेश कर जाती हैं:

वह व्यक्ति :-

1. इस बात पर अटल विश्वास कर लेता है कि परमात्मा न जन्म लेता है और न कभी मरता है। सब कुछ बनाने वाला वही एक है परन्तु उसे बनाने वाला कोई नहीं। वह स्वयं ही प्रगट हुआ इसलिए ना ही उसका कोई माता पिता नही है और न ही उसकी कोई शक्ल-सूरत है।एक परमात्मा के सिमरन को छोड़कर किसी अवतार तथा देवी देवता जैसे ब्रहमा, विष्णु, शिवजी, राम, कृष्ण, गणेश, हजरत मुहम्मद, विश्वकर्मा, भिन्न-भिन्न माताएं जैसे: संतोषी माता, लक्ष्मी, दुर्गा इत्यादि तथा चाँद सूरज नदियों, वृक्षों, पशुओं, पक्षियों तथा मूर्तियों इत्यादि की पूजा बिल्कुल भी नहीं करता। वह दस गुरू साहिबान की काल्पनिक फोटो (तस्वीरों) को भी नहीं मानता और किसी राधा स्वामी, निरंकारी, व नामधारी आदि में भी आस्था बिल्कुल नहीं रखता।

2. एक परमात्मा के सिमरन को छोड़कर किसी अवतार तथा देवी देवता जैसे ब्रहमा, विष्णु, शिवजी, राम, कृष्ण, गणेश, हजरत मुहम्मद, विश्वकर्मा, भिन्न-भिन्न माताएं जैसे: संतोषी माता, लक्ष्मी, दुर्गा इत्यादि तथा चाँद सूरज नदियों, वृक्षों, पशुओं, पक्षियों तथा मूर्तियों इत्यादि की पूजा बिल्कुल भी नहीं करता। वह दस गुरू साहिबान की काल्पनिक फोटो (तस्वीरों) को भी नहीं मानता और किसी राधा स्वामी, निरंकारी, व नामधारी आदि में भी आस्था बिल्कुल नहीं रखता।

3. सिर से लेकर पैरों के नाखूनों तक जहां कहीं भी केश (बाल) हैं, उन्हें काटता नही है बल्कि उनकी संभाल रखता है।

4. किसी भी प्रकार का नशा, जैसे: तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, पान पराग, अफीम, भांग, स्मैक इत्यादि करना तो दूर नशा करने वालों के हाथ के तैयार किए हुए पदार्थों का सेवन भी नहीं करता तथा मास, मछली, अण्डा इत्यादि तामसिक भोजन भी ग्रहण नहीं करता।

5. पुरूष (Male) पर-नारी (पराई स्त्री) को अपनी माँ, बहन तथा बेटी के समान समझता है और इसी तरह स्त्री (Female) पर-पुरूष (दूसरे आदमी) को :- पिता, भाई तथा पुत्र के समान समझती है।

6. हाथ पर मौली नहीं बांधता, माथे पर तिलक नहीं लगाता, वर्त, तीर्थ स्नान, श्राद्ध, शमशान, समाधियों, कबरों इत्यादि को बिल्कुल नहीं मानता ।

7. रक्षा बंधन, लक्ष्मी पूजा, टीका, नवरात्रे, अष्टमी, नवमी, कंजक, लोहड़ी, होली, दीपावली इत्यादि फजूल के त्यौहार नहीं मानता है।

8. अपने नाम के साथ जाति नहीं लगाता जैसे ओबराए, कोच्छड़, पाहवा, सेठी, गरेवाल, भुल्लर, बांगा, बत्तरा, सलूजा इत्यादि।

9. हर एक दिन-वार को एक समान समझता है। जैसे मंगल, शनि, रविवार इत्यादि। भाव पवित्र और अपवित्र दिन का ख्याल नहीं करता । अमावस, शंगरांद, पूरनमाशी इत्यादि नहीं मनाता।

10. खुशी-गमी के मौके पर फजूल की रस्में नहीं करता जैसे कि मृतक संस्कार के समय मृतक प्राणी को नए कपड़े पहनाना, लाश के उपर दुशाले सजाना, पैसे रखकर माथा टेकना, चिता को आग लगाते समय परिक्रमा करना, कपाल क्रिया करना, मटका फोड़ना, फूल चुगना, फुलों को कीरतपुर साहिब अथवा हरिद्वार जाकर जल प्रवाह करना। अंतिम दिन आटा, दाल, बर्तन, फल, बिस्तरे, छतरी, जूते, कपड़े, फोटो इत्यदि रखना। बच्चे के जन्म दिन पर केक काटना और शादी के समय भी फजूल की रस्में करना इत्यादि।

11. किसी का हक नहीं मारता, कम नहीं तोलता, मिलावट नहीं करता।

12. किसी की झूठी तारीफ या निंदा नहीं करता।

13. सच्च को सच्च तथा झूठ को झूठ कहने की हिम्मत रखता है। नोट : अध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले की शुरूआत ही सच बोलने से शुरू होती है।

14. फैशन के अनुसार भड़कीले कपड़े नहीं पहनता । वह तो केवल तन ढकने तथा तन को सर्दी-गर्मी से बचाने क लिए बिल्कुल सादा पहरावा पहनता है। सादा पहरावा भी दुनिया को दिखाने और लूटने के लिए नहीं पहनता । इसी तरह स्त्री भी दिखावे की जिंदगी से बहुत दूर रहती है। इसीलिए वह न तो किसी किस्म के आभूषण पहनती है और न ही किसी प्रकार का मेकअप करती है। जैसे कि नेल पालिश, लिपिस्टिक, बिंदी, सन्दूर, मेहंदी लगाना, नाखून बढ़ाना, बाल रंगना इत्यादि।

15. सारी मनुष्य जाति ही नहीं बल्कि उस कादर की बनाई सारी कुदरत पशु, पक्षी, वनस्पति, हवा, पानी, समुद्र, नदियां, पहाड़, जंगल इत्यादि सबके के साथ बहुत प्यार करता है तथा तन-मन-धन स सबका भला चाहता है।

16. किसी देश की हदबंदी को नहीं मानता, सारा संसार ही उसका अपना है।

17. किसी पद की दौड़ में शामिल नहीं होता जैसे कि आजकल गुरुद्वारा की प्रबन्धक कमेटियों तथा सरकारी प्रबंध के लिए मैंबर बनते हैं और मैंबर बनने के लिए घर-घर की खाक छानते हैं। हां, इलाका निवासी मिलकर यदि उसे कोई भी जिम्मेदारी सौंपते हैं तो उसको निस्वार्थ होकर सेवा समझते हुए तन-मन के साथ निभाने की कोशिश करता है।

18. जीवन काल में ही मुक्त होता है मरने के बाद मुक्ति में उसका विश्वास नहीं है। गुरुवाणी के अनुसार जीवन-मुक्त होने के कुछ चिन्ह इस प्रकार हैं। जैसे कि हर समय खुश रहना, मान-अपमान, नफा-नुकसान, दुख-सुख, जन्म तथा मृत्यु समय, खुशी और गमी के समय सदैव आनंद की अवस्था में ही बनें रहना।

19. सोने तथा मिट्टी को एक समान समझता है। मतलब सोना अथवा किसी भी कीमती वस्तु के प्रभाव में नहीं आता।

20. मुँह से बातें तो किसी के साथ कर रहा होता है। परन्तु अन्तर आत्मा में, परमात्मा में लीन रहता है।

21. दूसरों पर जुल्म होता देखकर वीर रस में आ जाता है पर अपने ऊपर कई प्रकार के तसीहे-तकलीफें तथा तशद्ध सहकर भी शराप नहीं देता।

अब आपने तो यह समझ ही लिया होगा कि सिक्ख धर्म (तीसरा धर्म) बाकी दोनों धर्मो (सनातन और इस्लाम) से कैसे अलग है ? लेकिन फिर भी कुछ लोग यह कहते सुने जाते हैं कि सिक्ख हिन्दू ही हैं, हैं न वे अज्ञानी लोग ? क्या वे ऐसी-वैसी बातें कहकर अपनी अज्ञानता का सबूत ही नहीं देते ?

यह विषय पढ़कर, आपके ज्ञान में अवश्य वृद्धि हो गई होगी कि गुरू नानक की विचारधारा पर पूरी तरह चलने वाला कितना महान व्यक्ति ही नहीं बल्कि मनुष्य-काया में ही परमेश्वर का रूप हो जाता है। लेकिन यदि आप ऐसी महान आत्मा को ढूंढने निकलेंगे तो आप को आम सिक्ख की बात तो दूर, बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानी जो सालों से दिखने में बड़ी पूजा-पाठ करते नजर आ रहे होंगे, में भी कुछ-कुछ कमियाँ जरूर नजर आ ही जायेंगी। इसीलिए ही गुरू जी ने अपनी बाणी में लिखा है :-

“कोटन मै नानक कोऊ, नारायण जह चीत”

ऐसा व्यक्ति, करोड़ो में कोई, एक आध ही होता है।

गुरू जी द्वारा दिखाए मार्ग पर जो व्यक्ति पूरी तरह चल रहा है। उसको बार-बार नमस्कार तथा जो ऐसा बनने की कोशिश में है, उस पर भी कुर्बान

इन धार्मिक पचों की फोटो-कापी करवा कर अथवा हू-ब-हू छपवाकर, प्रचार हित अपने हाथों से संगत में बॉटकर अथवा गुरुद्वारों में चिपकाकर अपना दसबंध सफल करें।

जरनैल सिंघ, W2-260, गली नं. 15, सोम बाजार, शिव नगर, जेल रोड़, तिलक नगर, नई दिल्ली 58 फोन नं. 011-25110043, 9210 11 0971, 9250 530 830

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